Manoj Kumar Jha Contact Details, Contact Address, Phone Number, Email ID, Website, Member Of Parliam

Rajya Sabha Member Date: 05/22/2019

Manoj Kumar Jha is an Indian politician who is a member of Rajya Sabha in Indian Parliament and a member of Rashtriya Janta Dal. He currently serves as the national spokesperson of the Rashtriya Janata Dal. On 15 March 2018, he was elected unopposed to the Rajya Sabha from the state of Bihar. Jha completed his master's degree from Department of Social Work from Delhi University in 1992 and PhD in 2000. He has been a Professor at The Department of Social Work University Of Delhi, and its head between 2014 and 2017.


In October 2020, it was reported that he had become Tejashwi Yadav's principal political adviser. His popularity amongst citizens increased after his speech during the July 2021 session of the Rajya Sabha (India's upper house of parliament). On 4 February 2022, Jha heavily criticized the President's address to the Rajya Sabha, and called for a "non-partisan" speech representing the concerns of all citizens.


Name : Shri Prof. Manoj Kumar Jha


State: Bihar


Party: Rashtriya Janata Dal


Father's Name : Shri Jawahar Jha


Mother's Name : Shrimati Madhuri Jha


Date of Birth : 5 August 1967


Place of Birth : Saharsa (Bihar)


Marital Status : Married on 26 February 1996


Spouse's Name : Shrimati Namrata Jha


Children : Two daughters


Educational Qualification : M.A. (Social Work), Ph.D. Educated at University of Delhi, Delhi


Profession : Teacher and Educationist


Permanent Address : Chanakyapuri, Gangzala, Ward No. 19, Saharsa, Bihar 852201


Tel: 06478-223674, 


Mob: 9899694883


Present Address : C-1/42, Pandara Park, New Delhi 


Tel.- 23383738


E-mail : jha.manojk@sansad.nic.in


Positions Held :
April 2018 : Elected to Rajya Sabha
June 2018 - Oct. 2019 and April 2021 onwards : Member, Committee on Rules
Sept. 2018 - May 2019 : Member, Committee on Coal and Steel
Dec. 2018 - Nov. 2019 : Member, Committee on Provision of Computers to Members of Rajya Sabha (PCMRS)
Sept. 2019 onwards : Member, Committee on Railways
Oct. 2019 onwards : Member, Consultative Committee for the Ministry of Social Justice and Empowerment
July 2020- April 2021 : Member, Business Advisory Committee

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    सभी रेल्वै टेक्नीशियन की 100% waiting clear नहीं हो रही है हमारे साथ हो रहे अन्याय के संबंध में । by Manoj Kumar:

    (4 of 5)

    सेवा में..

    श्रीमान

    दिनांक:-14/09/2022


    विषय: रेलवे भर्ती बोर्ड के विज्ञापन संख्या CEN 01/2018 के अंतर्गत 6770+1909 Standby अप्रूवल टेक्नीशियन वैकेंसी पर ALP के तरह DIVERSION नियम लागू करने के संदर्भ में तथा रेलवे Standing committee की बैठक में सभी 29 सदस्यों (लोकसभा के 21+8 राज्य सभा) के द्वारा 28.06.2022 की बैठक में TECHNICIAN 100% वेटिंग क्लियर करने के मुद्दे को प्रमुखता दी गई. इस विषय पर पुनः ध्यान आकर्षित करने हेतु।

    महोदय,

    CEN-01/2018 TECHNICIAN के 4 हजार अभ्यर्थी अब भी CBT1, 2 CBAT, सभी प्रमाण पत्र तथा
    मेडिकल जांच अगस्त 2019 में ही पास करके पिछले 4 सालों से अपने ज्वाइनिंग के इंतजार में बैठे हैं। रेलवे Standing committee की बैठक में सभी 29 सदस्यों (लोकसभा के 21+8 राज्य सभा) के द्वारा 28.06.2022 की बैठक में Technician Standby सूची को 100% वेटिंग क्लियर करने के मुद्दे को प्रमुखता दी गई एवं सहमति बनी।

    30.06.2022 को रेल मंत्रालय द्वारा नोटिस जारी करके वर्तमान समय में हमारे जीवन को देश सेवा में
    लगाने की जिम्मेदारी सभी Zonal Railway को सौंपी हैं। किंतु Diversion नियम को लेकर Zonal
    Railway से कोई सूचना या नोटिस अभी तक प्राप्त नहीं हुआ है. वर्तमान समय में लगभग 1.5 लाख रिक्त पदों पर रेलवे द्वारा नई भर्ती निकालने की तैयारी की जा रही है।

    हमारी कुछ महत्पूर्ण मांगे इस प्रकार हैं

    1. यदि किसी भी ट्रेड या समुदाय की अप्रूवल बैंकसी NEC जाए, तो उन पदों पर MECHANICAL DEPARTMENT में MECHANICAL ट्रेड वाले, ELECTRICAL में ELECTRICAL ट्रेड वाले तथा ENGINEERING में ENGINEERING ट्रेड वाले स्टैंडबाई अभ्यर्थियों को मौका दिया जाए।

    2. Assistant loco Pilot की तरह Technician के पदों पर भी Diversion तथा Distribution RRCB के द्वारा हो।

    3. Technician की Additional Vacancy को 31 दिसम्बर 2022 से बढ़ाकर 31 जुलाई 2023 तक किया जाए।

    हम सभी टेक्नीशियन मेडिकल फिट स्टैंडबाय अभ्यर्थी विगत 4 वर्षो से मानसिक, आर्थिक तथा सामाजिक प्रताड़ना सह रहे हैं। हमारे देश के साथ ही रेलवे के विकास में योगदान निभाने के लिए एक मौका दिया जाए रेलवे में ज्वाइनिंग देकर हमारी मदद करें

    Message by Mangilal Kajodia:

    (4 of 5)

    2024 के बाद हमें क्या चाहिए ?
    प्रजातंत्रीय भारत या सनातनीय धर्मं व्यवस्था वाला हिन्दू राष्ट्र ?
    देश में रहने वाला हर व्यक्ति अर्थात देश का हर नागरिक इस देश का मालिक है. हर व्यक्ति को एक वोट का अधिकार मिला हुआ है. एक से ज्यादा वोट कोई नहीं दे सकता. यहाँ न कोई बड़ा है न कोई छोटा है. इस देश को चलाने में हर व्यक्ति कम-ज्यादा अपना आर्थिक सहयोग देता है.
    एक भिखारी जो पांच रूपये भीख में लेता है और किसी होटल में जा कर एक कप चाय पीता है. उस एक कप चाय में जो चायपत्ती डलती है, उस चाय पत्ती पर जीएसटी लगा है, उस चाय में जो शकर डली है, उस पर भी जीएसटी लगा है. कहने का तात्पर्य है कि एक भिखारी का भी भारत के खजाने में कुछ न कुछ पैसा जाता है.
    हम इस देश के मालिक कैसे हैं –
    इसे एक उदहारण के रूप में समझा जा सकता है. मान लेते हैं कि 25 लोग मिल कर एक एक लाख रूपये इकट्ठे कर के एक बस खरीदते हैं. उस बस पर सभी 25 लोगों का ही बराबर का अधिकार है. अब ये 25 लोग मिलकर एक ड्रायवर और एक कंडेक्टर रखते हैं. अब सवाल यह है कि उन ड्रायवर-कंडेक्टर को इन 25 लोगों की इच्छानुसार बस का सञ्चालन करना चाहिए या अपनी मर्जी से. या उनके हाथ में एक बार बस दे दी तो जैसा चाहे वे करें?
    यह देश भी उन 25 लोगों की तरह 135 करोड़ लोगों का है. हम 135 करोड़ लोग इस देश के मालिक हैं. राष्ट्रपति, प्रधान मंत्री, सांसद, न्यायाधीश, अफसर आदि सब हमारे नौकर हैं. हम इनको तनख्वाह देते हैं. इन की सुख सुविधाओं का खर्चा उठाते हैं. परन्तु ये लोग आचरण इस तरह कर रहे हैं कि ये इस देश के मालिक हैं और हम इनके गुलाम.
    पांच साल बाद वोट के समय ये हमें मुर्ख समझते हैं. इनका कहना रहता है कि दो तीन महीने इन (हम) मूर्खों के सामने हाथ जोड़ो मुर्ख बनाओ और पांच साल ऐश करो. यहाँ तक भी ठीक था. अब तो ये इस दिशा में कार्य करने लग गए हैं कि ये बार बार का पांच साल का झंझट भी क्यों होना? हमें यह संतोष हो रहा था कि चलो पांच साल बाद तो हाथ जोड़ने आयेंगे तब देख लेंगे. अब तो ये चुनाव का झंझट ही मिटा देना चाहते चाहते हैं.
    चुनाव इस बात को प्रमाणित करता है और हमें आश्वस्त करते है कि इस देश में तमाम कमियों के बावजूद हम आम जनता का कोई अस्तित्व है.
    हमारा अस्तित्व ही हमारा स्वाभिमान है. यह स्वाभिमान ही प्रजातंत्र है. अनगिनत कुर्बानियां देकर इस प्रजातंत्र को प्राप्त किया है. जिन्होंने कोई कुर्बानी नहीं दी, उन्होंने सबका साथ, सबका विश्वास और सबका विकास का नारा देकर हमें धोखा दिया , मूर्ख बनाया, झांसे में लिया, हमारे साथ ठगी की और हमारे प्रजातंत्र पर कब्जा कर लिया. अब ये इस प्रजातंत्र को ख़तम करने के लिए बड़ी तेजी से आगे बड रहे हैं.
    अब हमारे सामने सबसे बड़ा सवाल यह पैदा हो गया है कि हम इस प्रजातंत्र को इनके चंगुल से बचाएं कैसे?
    यदि हम यह सोंच रहे कि श्री नरेंद्र मोदी ने या भारतीय जनता पार्टी ने ऐसा किया है तो हम बिलकुल गलत हैं. श्री नरेंद्र मोदी या भारतीय जनता पार्टी तो वह कर रहे हैं, जो राष्ट्रीय स्वयं संघ चाहता है. और राष्ट्रीय सेवक संघ ब्राह्मणवाद का चेहरा है.
    सारे ब्राह्मण बुरे नहीं है, अनगिनत ब्राह्मणों ने आजादी की लड़ाई लड़ी है. देश को स्वतंत्र करवाने में और देश में प्रजातंत्र की स्थापना में अहम् भूमिका निभाई है. बालगंगाधर तिलक, पंडित जवाहरलाल नेहरू, पंडित मदनमोहन मालवीय आदि ये सभी ब्राह्मण ही तो थे. परन्तु ब्राह्मणों का एक वर्ग है जो चाहता है कि देश में वर्चस्व केवल ब्राह्मणों का रहना चाहिए.
    पिछले एक हजार साल की गुलामी के लिए इनकी यही वर्चस्व की भावना ही जिम्मेदार है. ये सत्ता हाथ में लेने की बजाय सत्ताधीश को अपने कब्जे में रखने के सिद्धांत पर काम करते हैं.
    इनके दो नारों के निहितार्थ को समझने की आवश्यकता है. गो ब्राह्मणों की रक्षा करना रजा का प्रथम दायित्व है और दूसरा रजा ईश्वर का अवतार है.
    गाय को आगे करके अपनी रक्षा राजा से करवा ली और राजा को ईश्वर का अवतार बता कर राजा के विरुद्ध पैदा होने वाली जनता की नाराजगी या विद्रोह को समाप्त कर दिया और यदि कुछ बचा भी तो उसे किस्मत का नाम देकर आदमी को अन्याय के विरुद्ध खड़ा होने के लिए सोचने का अवसर ही ख़तम कर दिया.
    धर्म का नाम लेकर वर्ण व्यवस्था बनाई. वर्ण व्यवस्था को कर्म आधारित बताकर जन्म आधारित कब बना दिया किसी को समझ में ही नहीं आया.
    समाज के अस्सी प्रतिशत लोगों को बड़ी कठोरता के साथ शिक्षा से वंचित किया अर्थात उन्हें अनपढ़ बनाकर रखा. क्योकि पढ़ा लिखा आदमी सवाल करने लग जाता है. जवाब देने लग जाता है. इसलिए इन्होने ऐसी व्यवस्था खडी कर दी कि जिसमें न कोई पढ़ पाए, न कोई सवाल कर पाए न कोई बहस कर पाए. और राजा और राजा के साथ हम मजे करें.
    देश की 85 प्रतिशत जनता शूद्र जिसे न पढ़ने का अधिकार और न ही सम्पति का अधिकार. जिसका काम केवल तिन वर्ग ब्राहमण, क्षत्रिय और बनिया की सेवा करना. वे जो काम बताएं करें और वे जो दे दें उसे अपना किस्मत मानकर उसके सहारे जी ले. यह है सनातन धर्म या सनातन धर्म व्यवस्था.
    इस सनातन व्यवस्था में ब्राहमण, राजपूत और बनिया को छोड़कर बाकि सब जाति के लोग शूद्र हैं. इस सनातन व्यवस्था को हिन्दू राष्ट्र के नाम पर स्थापित करने के आज सपने दिखाए जा रहे हैं.
    इस समय हमारे सामने सबसे बड़ा सवाल यह पैदा हो गया है कि 2024 में सनातन धर्म की व्यवस्था को लागू करने के लिए वोट करें या प्रजातंत्र को बनाये रखने के लिए ? जो लोग यह बोल रहे हैं कि हमें हिन्दू राष्ट्र की स्थापना करना है, सनातन धर्म को पुन: स्थापित करना है, इसका मतलब है वे हमारे प्रजातंत्र को समाप्त करने के लिए उतारू हैं.
    सनातन धर्म व्यवथा वालों के पास बड़े बड़े पंडित और कथावाचक हैं जो चमत्कार दिखाने या रुद्राक्ष बांटने के नाम पर लाखों लोगों की भीड़ इकट्ठी कर अपने पक्ष में माहोल बनाने में लगे हुए हैं. दूसरी तरफ प्रजातंत्र बनाये रखना चाहने वाले बोलने से या बात करने से भी डर रहे हैं. वे अभी भी यह सोंच रहे हैं की कौन लफड़े में पडे.
    हम विचार करें पिछले एक हजार साल की गुलामी के दोर में भी इन सनातन धर्म वयवस्था वालों को क्या परेशानी थी?. अकबर के साथ नव रत्न बनकर बैठ गए. हमें कह दिया कोऊ नृप हो हमें का हानि अर्थात कोई भी राजा बने हमें क्या मतलब. हम गुलाम हैं गुलाम ही रहेंगे कोई राजा तो बनेंगे नहीं. इसलिए चुपचाप बैठे रहो.
    जब हम इस बात का विचार करते हैं की 70 साल के प्रजातंत्र ने हमें क्या दिया? तो हमें 70 साल पहले के भारत की तस्वीर और आज के भारत की तस्वीर को साथ साथ रख कर देखना पड़ेगा. 1947 में 35 करोड़ लोग थे. और आज 135 करोड़. तब 35 करोड़ भी पेट भर नहीं खा पा रहे थे, अकाल पड़ रहे थे. लोग अपने घर में एक जोड़ कपड़ा आने जाने के लिए रखते थे. फटे पुराने कपडे पहनना कोई शरम की बात नहीं थी. सडके नहीं थीं, रेल नहीं थीं. सारे रिश्ते नातेदार 25 किलोमीटर के घेरे में सिमटे हुए थे. दूर दूर तक स्कूल कालेज के दर्शन दुर्लभ थे. जब लगान वसूली का समय आता था तो लोग डर के मारे जंगल में भाग जाते थे और महीनों जंगल में रहते थे. जमींदार जागीरदार के मकान ही पक्के हुआ करते थे. बाकि घरों की दीवारे मिट्टी की और छत फूंस की हुआ करती थी.
    1960 में पहली बार मेरे गाँव में एक शिक्षक की नियुक्ति हुई थी. बिल्डिंग नहीं थी. गाँव के मंदिर में पहली क्लास से पांचवी क्लास तक के बच्चे एक साथ बैठते थे. पर कम से कम पढाई शुरू हुई थी. उसमे हम पढ़े. आगे बढे. नौकरी की. आज पेंसन ले रहे हैं. अपने बच्चों को पढाया. पूरा परिवार ऊपर उठा.
    इन 70 साल में जो लोग छोटी नौकरी में थे, उन्होंने अपने बच्चो को पढ़ा डाक्टर, इंजीनियर आदि बनाकर बड़े बड़े पदों तक पहुंचा दिया.
    क्या आज हमें सनातन धर्म व्यवस्था या हिन्दू राष्ट्र बनाकर 1947 या उससे पहले का भारत बनाना चाहिए ?
    आज हमें उन लोगों से पूछने की आवश्यकता है जो हिन्दू राष्ट्र बनाना चाहते हैं कि आजाद भारत में एक हिन्दू को हिन्दू होने का क्या नुकसान हुआ? नोट बंदी, कारखानों का बंद होना, हवाई अड्डों या रेलवे स्टेशनो को पूंजी पतियों के हाथ में सौपना, बड़े बड़े पूंजी पतियों का खरबों रुपया माफ करना, या मंदिरों में लाखों की संख्या में दिए जलाने आदि से गरीब हिन्दुओं को क्या लाभ हुआ? और हिन्दू राष्ट्र बना देने से गरीब हिन्दुओं को क्या लाभ होगा?
    M L Kajodia

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