Complaint Message

  • Manoj Kumar Jha Contact Details, Contact Address, Phone Number, Email ID, Website, Member Of Parliam - Message
    Mangilal Kajodia on 2023-02-21 22:30:06

    2024 के बाद हमें क्या चाहिए ?
    प्रजातंत्रीय भारत या सनातनीय धर्मं व्यवस्था वाला हिन्दू राष्ट्र ?
    देश में रहने वाला हर व्यक्ति अर्थात देश का हर नागरिक इस देश का मालिक है. हर व्यक्ति को एक वोट का अधिकार मिला हुआ है. एक से ज्यादा वोट कोई नहीं दे सकता. यहाँ न कोई बड़ा है न कोई छोटा है. इस देश को चलाने में हर व्यक्ति कम-ज्यादा अपना आर्थिक सहयोग देता है.
    एक भिखारी जो पांच रूपये भीख में लेता है और किसी होटल में जा कर एक कप चाय पीता है. उस एक कप चाय में जो चायपत्ती डलती है, उस चाय पत्ती पर जीएसटी लगा है, उस चाय में जो शकर डली है, उस पर भी जीएसटी लगा है. कहने का तात्पर्य है कि एक भिखारी का भी भारत के खजाने में कुछ न कुछ पैसा जाता है.
    हम इस देश के मालिक कैसे हैं –
    इसे एक उदहारण के रूप में समझा जा सकता है. मान लेते हैं कि 25 लोग मिल कर एक एक लाख रूपये इकट्ठे कर के एक बस खरीदते हैं. उस बस पर सभी 25 लोगों का ही बराबर का अधिकार है. अब ये 25 लोग मिलकर एक ड्रायवर और एक कंडेक्टर रखते हैं. अब सवाल यह है कि उन ड्रायवर-कंडेक्टर को इन 25 लोगों की इच्छानुसार बस का सञ्चालन करना चाहिए या अपनी मर्जी से. या उनके हाथ में एक बार बस दे दी तो जैसा चाहे वे करें?
    यह देश भी उन 25 लोगों की तरह 135 करोड़ लोगों का है. हम 135 करोड़ लोग इस देश के मालिक हैं. राष्ट्रपति, प्रधान मंत्री, सांसद, न्यायाधीश, अफसर आदि सब हमारे नौकर हैं. हम इनको तनख्वाह देते हैं. इन की सुख सुविधाओं का खर्चा उठाते हैं. परन्तु ये लोग आचरण इस तरह कर रहे हैं कि ये इस देश के मालिक हैं और हम इनके गुलाम.
    पांच साल बाद वोट के समय ये हमें मुर्ख समझते हैं. इनका कहना रहता है कि दो तीन महीने इन (हम) मूर्खों के सामने हाथ जोड़ो मुर्ख बनाओ और पांच साल ऐश करो. यहाँ तक भी ठीक था. अब तो ये इस दिशा में कार्य करने लग गए हैं कि ये बार बार का पांच साल का झंझट भी क्यों होना? हमें यह संतोष हो रहा था कि चलो पांच साल बाद तो हाथ जोड़ने आयेंगे तब देख लेंगे. अब तो ये चुनाव का झंझट ही मिटा देना चाहते चाहते हैं.
    चुनाव इस बात को प्रमाणित करता है और हमें आश्वस्त करते है कि इस देश में तमाम कमियों के बावजूद हम आम जनता का कोई अस्तित्व है.
    हमारा अस्तित्व ही हमारा स्वाभिमान है. यह स्वाभिमान ही प्रजातंत्र है. अनगिनत कुर्बानियां देकर इस प्रजातंत्र को प्राप्त किया है. जिन्होंने कोई कुर्बानी नहीं दी, उन्होंने सबका साथ, सबका विश्वास और सबका विकास का नारा देकर हमें धोखा दिया , मूर्ख बनाया, झांसे में लिया, हमारे साथ ठगी की और हमारे प्रजातंत्र पर कब्जा कर लिया. अब ये इस प्रजातंत्र को ख़तम करने के लिए बड़ी तेजी से आगे बड रहे हैं.
    अब हमारे सामने सबसे बड़ा सवाल यह पैदा हो गया है कि हम इस प्रजातंत्र को इनके चंगुल से बचाएं कैसे?
    यदि हम यह सोंच रहे कि श्री नरेंद्र मोदी ने या भारतीय जनता पार्टी ने ऐसा किया है तो हम बिलकुल गलत हैं. श्री नरेंद्र मोदी या भारतीय जनता पार्टी तो वह कर रहे हैं, जो राष्ट्रीय स्वयं संघ चाहता है. और राष्ट्रीय सेवक संघ ब्राह्मणवाद का चेहरा है.
    सारे ब्राह्मण बुरे नहीं है, अनगिनत ब्राह्मणों ने आजादी की लड़ाई लड़ी है. देश को स्वतंत्र करवाने में और देश में प्रजातंत्र की स्थापना में अहम् भूमिका निभाई है. बालगंगाधर तिलक, पंडित जवाहरलाल नेहरू, पंडित मदनमोहन मालवीय आदि ये सभी ब्राह्मण ही तो थे. परन्तु ब्राह्मणों का एक वर्ग है जो चाहता है कि देश में वर्चस्व केवल ब्राह्मणों का रहना चाहिए.
    पिछले एक हजार साल की गुलामी के लिए इनकी यही वर्चस्व की भावना ही जिम्मेदार है. ये सत्ता हाथ में लेने की बजाय सत्ताधीश को अपने कब्जे में रखने के सिद्धांत पर काम करते हैं.
    इनके दो नारों के निहितार्थ को समझने की आवश्यकता है. गो ब्राह्मणों की रक्षा करना रजा का प्रथम दायित्व है और दूसरा रजा ईश्वर का अवतार है.
    गाय को आगे करके अपनी रक्षा राजा से करवा ली और राजा को ईश्वर का अवतार बता कर राजा के विरुद्ध पैदा होने वाली जनता की नाराजगी या विद्रोह को समाप्त कर दिया और यदि कुछ बचा भी तो उसे किस्मत का नाम देकर आदमी को अन्याय के विरुद्ध खड़ा होने के लिए सोचने का अवसर ही ख़तम कर दिया.
    धर्म का नाम लेकर वर्ण व्यवस्था बनाई. वर्ण व्यवस्था को कर्म आधारित बताकर जन्म आधारित कब बना दिया किसी को समझ में ही नहीं आया.
    समाज के अस्सी प्रतिशत लोगों को बड़ी कठोरता के साथ शिक्षा से वंचित किया अर्थात उन्हें अनपढ़ बनाकर रखा. क्योकि पढ़ा लिखा आदमी सवाल करने लग जाता है. जवाब देने लग जाता है. इसलिए इन्होने ऐसी व्यवस्था खडी कर दी कि जिसमें न कोई पढ़ पाए, न कोई सवाल कर पाए न कोई बहस कर पाए. और राजा और राजा के साथ हम मजे करें.
    देश की 85 प्रतिशत जनता शूद्र जिसे न पढ़ने का अधिकार और न ही सम्पति का अधिकार. जिसका काम केवल तिन वर्ग ब्राहमण, क्षत्रिय और बनिया की सेवा करना. वे जो काम बताएं करें और वे जो दे दें उसे अपना किस्मत मानकर उसके सहारे जी ले. यह है सनातन धर्म या सनातन धर्म व्यवस्था.
    इस सनातन व्यवस्था में ब्राहमण, राजपूत और बनिया को छोड़कर बाकि सब जाति के लोग शूद्र हैं. इस सनातन व्यवस्था को हिन्दू राष्ट्र के नाम पर स्थापित करने के आज सपने दिखाए जा रहे हैं.
    इस समय हमारे सामने सबसे बड़ा सवाल यह पैदा हो गया है कि 2024 में सनातन धर्म की व्यवस्था को लागू करने के लिए वोट करें या प्रजातंत्र को बनाये रखने के लिए ? जो लोग यह बोल रहे हैं कि हमें हिन्दू राष्ट्र की स्थापना करना है, सनातन धर्म को पुन: स्थापित करना है, इसका मतलब है वे हमारे प्रजातंत्र को समाप्त करने के लिए उतारू हैं.
    सनातन धर्म व्यवथा वालों के पास बड़े बड़े पंडित और कथावाचक हैं जो चमत्कार दिखाने या रुद्राक्ष बांटने के नाम पर लाखों लोगों की भीड़ इकट्ठी कर अपने पक्ष में माहोल बनाने में लगे हुए हैं. दूसरी तरफ प्रजातंत्र बनाये रखना चाहने वाले बोलने से या बात करने से भी डर रहे हैं. वे अभी भी यह सोंच रहे हैं की कौन लफड़े में पडे.
    हम विचार करें पिछले एक हजार साल की गुलामी के दोर में भी इन सनातन धर्म वयवस्था वालों को क्या परेशानी थी?. अकबर के साथ नव रत्न बनकर बैठ गए. हमें कह दिया कोऊ नृप हो हमें का हानि अर्थात कोई भी राजा बने हमें क्या मतलब. हम गुलाम हैं गुलाम ही रहेंगे कोई राजा तो बनेंगे नहीं. इसलिए चुपचाप बैठे रहो.
    जब हम इस बात का विचार करते हैं की 70 साल के प्रजातंत्र ने हमें क्या दिया? तो हमें 70 साल पहले के भारत की तस्वीर और आज के भारत की तस्वीर को साथ साथ रख कर देखना पड़ेगा. 1947 में 35 करोड़ लोग थे. और आज 135 करोड़. तब 35 करोड़ भी पेट भर नहीं खा पा रहे थे, अकाल पड़ रहे थे. लोग अपने घर में एक जोड़ कपड़ा आने जाने के लिए रखते थे. फटे पुराने कपडे पहनना कोई शरम की बात नहीं थी. सडके नहीं थीं, रेल नहीं थीं. सारे रिश्ते नातेदार 25 किलोमीटर के घेरे में सिमटे हुए थे. दूर दूर तक स्कूल कालेज के दर्शन दुर्लभ थे. जब लगान वसूली का समय आता था तो लोग डर के मारे जंगल में भाग जाते थे और महीनों जंगल में रहते थे. जमींदार जागीरदार के मकान ही पक्के हुआ करते थे. बाकि घरों की दीवारे मिट्टी की और छत फूंस की हुआ करती थी.
    1960 में पहली बार मेरे गाँव में एक शिक्षक की नियुक्ति हुई थी. बिल्डिंग नहीं थी. गाँव के मंदिर में पहली क्लास से पांचवी क्लास तक के बच्चे एक साथ बैठते थे. पर कम से कम पढाई शुरू हुई थी. उसमे हम पढ़े. आगे बढे. नौकरी की. आज पेंसन ले रहे हैं. अपने बच्चों को पढाया. पूरा परिवार ऊपर उठा.
    इन 70 साल में जो लोग छोटी नौकरी में थे, उन्होंने अपने बच्चो को पढ़ा डाक्टर, इंजीनियर आदि बनाकर बड़े बड़े पदों तक पहुंचा दिया.
    क्या आज हमें सनातन धर्म व्यवस्था या हिन्दू राष्ट्र बनाकर 1947 या उससे पहले का भारत बनाना चाहिए ?
    आज हमें उन लोगों से पूछने की आवश्यकता है जो हिन्दू राष्ट्र बनाना चाहते हैं कि आजाद भारत में एक हिन्दू को हिन्दू होने का क्या नुकसान हुआ? नोट बंदी, कारखानों का बंद होना, हवाई अड्डों या रेलवे स्टेशनो को पूंजी पतियों के हाथ में सौपना, बड़े बड़े पूंजी पतियों का खरबों रुपया माफ करना, या मंदिरों में लाखों की संख्या में दिए जलाने आदि से गरीब हिन्दुओं को क्या लाभ हुआ? और हिन्दू राष्ट्र बना देने से गरीब हिन्दुओं को क्या लाभ होगा?
    M L Kajodia