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    VIKAS SHARMA on 2018-06-27 09:18:55

    श्रीमान
    21 जून, 2018 को आपके समाचारपत्र में एक ख़बर प्रकाशित हुई । ( पृष्ठ संख्या 2, हरियाणा पृष्ठ, कुरुक्षेत्र से प्रकाशित )
    इस ख़बर का शीर्षक दिया गया, '62% शिक्षक स्कूल में प्रयोग करते हैं घर जैसी भाषा। कैसे सुधरेगा बच्चों का लिविंग स्टैंडर्ड।'
    इस ख़बर के साथ मेरी निम्न आपत्तियाँ हैं:-
    1. सबसे पहले तो भाषा का स्तर बेहद सामान्य है। लिविंग स्टैंडर्ड के बजाए हिन्दी में इससे कहीं बेहतर शब्द थे। उनके प्रयोग से वाक्य कहीं अधिक प्रभावी बन पाता।
    2. बच्चों के साथ उनके घर जैसी भाषा में बात करना कोई ख़ामी नहीं, प्रभावी संप्रेषण की तकनीक है। कोई भी भाषा जिससे बच्चा आसानी और सुगमता से विषय को समझ सके, निःसंदेह वो सबसे बेहतर भाषा और माध्यम होगी। घर की, गाँव की या कहें बच्चों के परिवेश की ही भाषा इस मायने में उनके लिए सबसे मुफ़ीद है।
    3. ये अपने आप में बड़ी अजीब टिप्पणी सा लगता है कि अध्यापक की भाषा यदि आंचलिक भाषा है तो इससे ये तय हो जाता है कि बच्चों का लिविंग स्टैंडर्ड नहीं सुधर सकता। लिविंग स्टैंडर्ड तो हज़ारों बातें हैं जिनसे तय होता है, अध्यापक की भाषा कैसे बच्चों के लिविंग स्टैंडर्ड को कमतर कर देगी ये बेहद अजीब और अफसोसजनक टिप्पणी है।
    इन विद्यालयों में जिस पृष्ठभूमि से बच्चे आते हैं, उन स्थितियों के बावजूद हज़ारों बच्चे शानदार प्रदर्शन करते हैं। यदि अध्यापक बच्चों के साथ उनकी परिचित भाषा में संवाद न करेगा तो बहुत सम्भव है बच्चों से विषय की समझ भी ठीक से न हो सके।
    4. 93% बच्चों को स्कूल आना पसंद है, ये इतनी नई, अनोखी और उत्साहवर्धक बात है पर ये कहीं पृष्ठभूमि में ही रही, मुख्य शीर्षक न बन सकी।
    5. इसके अलावा कितने ही शोधों से प्रमाणित हो चुका है कि बच्चों को आरंभिक शिक्षा उनकी पहली भाषा में ही दी जाए। माफ करें पर ऐसा प्रतीत होता है आपके संवाददाता को शिक्षा और उसके वर्तमान ट्रेंड की बहुत सीमित जानकारी प्रतीत होती है।
    6. आपने कहा कि बच्चे खेल के पीरियड में खेल नहीं पाते, तो आपसे निवेदन है कि ये भी देखें कि 2 अध्यापक सब डाक मीटिंग के कार्य से 6 कक्षाओं को समय बचा के पढ़ाते हैं। प्राथमिक शालाओं में पी टी का भी पद नहीं, इसके लिए भी काश कभी लिखा गया होता।
    7. माना की ये सिर्फ़ एक सर्वेक्षण भर था, पर संवाददाता का ये दायित्व था कि इसके निहित अर्थों को ठीक से पकड़ पाता न कि बहुत ही चलताऊ ढंग से इसे लिया जाता।
    अतैव आपसे निवेदन है कि शिक्षा से जुड़ी खबरों को और अधिक परिपक्वता के साथ अपने यहाँ से प्रकाशित करें। सम्भव हो तो इस सेक्शन को कवर करने के लिए कोई बेहतर संवाददाता की सेवाएँ लें। इस प्रकार की ख़बरों से शिक्षा विभाग के बारे में तो भ्रांतियां खड़ी होती ही हैं साथ ही आपके जैसे प्रतिष्ठित समाचार पत्र की छवि भी फीकी पड़ती है।
    धन्यवाद,
    विकास शर्मा
    गाँव ईशरगढ़, डाक कौलापुर
    कुरुक्षेत्र।